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Waqf Amendment Bill: सियासी उठापटक और विवादों की पड़ताल

Waqf Amendment Bill: वर्तमान भारतीय राजनीति में वक़्फ़ संशोधन विधेयक चर्चा का प्रमुख विषय बन गया है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) इस विधेयक को पारित करने के लिए पर्याप्त संख्याबल रखता है।

Waqf Amendment Bill: बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की संख्या

बीजेपी के पास लोकसभा में 240 सांसद हैं, जबकि उसके प्रमुख सहयोगी दलों तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के क्रमशः 16 और 12 सांसद हैं। अन्य सहयोगी दलों को मिलाकर एनडीए की कुल संख्या 295 तक पहुंच जाती है, जो बहुमत के आंकड़े 272 से कहीं अधिक है।

Waqf Amendment Bill: विपक्षी दलों की स्थिति

कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के पास लगभग 234 सांसद हैं। विपक्षी सांसदों ने एनडीए के सहयोगियों, विशेष रूप से टीडीपी और जेडीयू को चेतावनी दी है कि यदि वे इस विधेयक का समर्थन करते हैं तो उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है।

Waqf Amendment Bill: टीडीपी और जेडीयू का रुख

टीडीपी ने स्पष्ट किया है कि वह विधेयक का समर्थन करेगी, लेकिन इसके नेता चंद्रबाबू नायडू ने मुसलमानों के साथ खड़े होने की बात भी कही है। वहीं, जेडीयू ने सरकार से आग्रह किया है कि इस कानून को पूर्व प्रभाव (retrospective effect) से लागू न किया जाए।

विधेयक में क्या हैं विवादित प्रावधान?

यह विधेयक पहली बार अगस्त 2023 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था, जिसके बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया। समिति ने इस पर विस्तृत रिपोर्ट दी और अब इसे पारित करने की प्रक्रिया चल रही है।

विधेयक के कुछ प्रमुख विवादित प्रावधान इस प्रकार हैं:

  1. वक़्फ़ बोर्ड और केंद्रीय वक़्फ़ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव: इस बदलाव को मुस्लिम संगठनों ने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया है।
  2. सरकारी संपत्तियों की वक़्फ़ मान्यता समाप्त करने का प्रस्ताव: विधेयक के अनुसार, यदि कोई सरकारी संपत्ति वक़्फ़ घोषित की गई है, तो वह अब वक़्फ़ संपत्ति नहीं मानी जाएगी। इसके स्वामित्व का निर्णय जिला कलेक्टर द्वारा किया जाएगा।

मुस्लिम संगठनों की आपत्ति

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस विधेयक के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। संगठन का कहना है कि यह विधेयक न केवल भेदभाव और अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। AIMPLB ने सभी धर्मनिरपेक्ष दलों से इस विधेयक का विरोध करने और इसके खिलाफ मतदान करने की अपील की है।

विपक्ष की रणनीति

विपक्षी दल इस विधेयक को लेकर आक्रामक रणनीति अपना रहे हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दल सरकार पर यह आरोप लगा रहे हैं कि यह विधेयक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला है।

सरकार का पक्ष

सरकार का कहना है कि यह विधेयक वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए जरूरी है। सरकार के अनुसार, इससे वक़्फ़ संपत्तियों के दुरुपयोग पर रोक लगेगी और इसका सही तरीके से उपयोग हो सकेगा।

संभावित प्रभाव

यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो इसका असर व्यापक हो सकता है।

  1. अल्पसंख्यक समुदाय में असंतोष: मुस्लिम संगठनों की ओर से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं।
  2. राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं: टीडीपी और जेडीयू के रुख को देखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे लंबे समय तक एनडीए के साथ बने रहते हैं या नहीं।
  3. कानूनी चुनौती: संभव है कि यह विधेयक अदालत में चुनौती का सामना करे, क्योंकि यह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा बन सकता है।

निष्कर्ष

वक़्फ़ संशोधन विधेयक भारतीय राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। बीजेपी और एनडीए के पास इसे पारित कराने के लिए पर्याप्त संख्याबल है, लेकिन विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का विरोध इस विधेयक को लेकर तनाव बढ़ा सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद में इस विधेयक पर होने वाली बहस और वोटिंग के दौरान क्या नया मोड़ आता है।

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