
Nagpur violence: नागपुर हिंसा मामले में आरोपी दो व्यक्तियों की संपत्तियों को तोड़ने की कार्रवाई पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने सोमवार को रोक लगा दी। इनमें मुख्य आरोपी फहीम खान भी शामिल हैं। [जहर्निसा खान बनाम नागपुर नगर निगम]
न्यायमूर्ति नितिन संब्रे और न्यायमूर्ति व्रुशाली जोशी की पीठ ने अधिकारियों की “मनमानी” की आलोचना की और कहा कि यह तोड़फोड़ 2022 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के विरुद्ध प्रतीत होती है। यह फैसला “इन रे: डायरेक्शन्स इन द मैटर ऑफ डिमोलिशन ऑफ स्ट्रक्चर्स” नामक मामले में दिया गया था।
कोर्ट ने दी अधिकारियों को फटकार
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “प्रथम दृष्टया, हम संतुष्ट हैं कि प्रतिवादी-अधिकारियों द्वारा की जा रही तोड़फोड़ सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध है।”
हालांकि, जब तक अदालत ने आदेश दिया, तब तक खान का दो-मंजिला मकान गिराया जा चुका था। लेकिन एक अन्य आरोपी यूसुफ शेख के घर के अवैध हिस्से को तोड़ने की कार्रवाई को कोर्ट ने रोक दिया।
“इस प्रकार, 21 मार्च 2025 को जारी किए गए नोटिस के अनुसार की जा रही संपूर्ण कार्रवाई पर अगले आदेश तक रोक लगाई जाती है,” कोर्ट ने निर्देश दिया।
नगर निगम से मांगा स्पष्टीकरण
कोर्ट ने कहा कि वह नोटिस और उसके आधार पर की गई कार्रवाई की वैधता पर विचार करेगी, जब नगर आयुक्त और कार्यकारी अभियंता की ओर से हलफनामा प्रस्तुत किया जाएगा। इस मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल को होगी।
खान, जो माइनॉरिटी डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हैं, उन 100 से अधिक लोगों में शामिल हैं जिन्हें हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। खान की मां जहर्निसा और यूसुफ शेख ने अदालत का रुख किया और अपने घरों की तोड़फोड़ को रोकने के लिए आपातकालीन राहत की मांग की।
बिना सुनवाई के की गई तोड़फोड़
याचिका में नगर निगम की कार्रवाई को चुनौती दी गई, जिसमें 21 मार्च को नोटिस जारी कर अनधिकृत निर्माण और भवन योजना की मंजूरी न होने को आधार बनाकर तोड़फोड़ का आदेश दिया गया था।
मामले को सुबह अदालत के समक्ष रखा गया और दोपहर में सुनवाई के लिए निर्धारित किया गया था। लेकिन सुनवाई से पहले ही प्रशासन ने खान की संपत्तियों को संजय बाग कॉलोनी, यशोधरा नगर में गिरा दिया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने संपत्ति मालिकों को सुनवाई का मौका न देने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह कार्रवाई “मनमानी तरीके से” की गई है।
कोर्ट की तीखी प्रतिक्रिया
खान के वकील, अधिवक्ता अश्विन इंगोले ने बार एंड बेंच को बताया कि कोर्ट प्रशासन की इस कार्रवाई से “हैरान” था।
“कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि जब मामला सुबह अदालत में रखा गया था और दोपहर में सुनवाई होनी थी, तो निगम ने इस बीच में तोड़फोड़ की कार्रवाई कैसे कर दी,” इंगोले ने कहा।
उन्होंने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, किसी भी तरह की तोड़फोड़ की कार्रवाई से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना आवश्यक है और प्रभावित व्यक्तियों को अपनी बात रखने का अवसर दिया जाना चाहिए।
नुकसान की भरपाई हो सकती है
इंगोले ने आगे कहा कि यदि यह तोड़फोड़ अवैध पाई जाती है, तो प्रभावित लोगों को हुए नुकसान की भरपाई प्रशासन को करनी होगी।
वहीं, नगर निगम के वकील अधिवक्ता जे बी कसाट ने अदालत को बताया कि तोड़फोड़ की कार्रवाई पूरी हो चुकी है। इसके बावजूद, कोर्ट ने नगर आयुक्त और कार्यकारी अभियंता से हलफनामा मांगते हुए कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल को होगी।
कौन-कौन कर रहा है पैरवी?
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ए आर इंगोले पेश हुए, जबकि नागपुर नगर निगम की ओर से अधिवक्ता जे बी कसाट और अधिवक्ता अमित प्रसाद ने पैरवी की।
निष्कर्ष
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने इस मामले में प्रशासन की कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के उल्लंघन के आरोप और बिना सुनवाई के की गई तोड़फोड़ ने प्रशासन की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा दिया है। 15 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई में यह तय होगा कि यह कार्रवाई कितनी वैध थी और क्या पीड़ितों को न्याय मिल पाएगा।
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