
Lucknow: की ज़मीन एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह कोई विकास योजना या इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि एक बड़ा ज़मीन घोटाला है, जिसने सैकड़ों परिवारों के सपनों को खंडहर बना दिया। इस घोटाले का मुख्य पात्र है असद रईस, जो खुद को एक प्रतिष्ठित बिल्डर बताता था, लेकिन असल में वह एक रणनीतिक ठग निकला।
Lucknow: असद रईस: एक धोखेबाज़ बिल्डर का चेहरा
असद रईस, निदेशक – आलिया कंस्ट्रक्शन एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, ने सोशल मीडिया, अखबारों और नकली नक्शों के ज़रिए इटौंजा और मोहनलालगंज जैसे क्षेत्रों में “ड्रीम प्रोजेक्ट्स” के नाम पर ज़मीनें बेचीं। लोगों को एक सुंदर घर और सुरक्षित भविष्य का सपना दिखाया गया, लेकिन हकीकत में वे ज़मीनें फर्जी निकलीं – न नक्शा पास, न रेरा अप्रूवल और न ही कोई वैध निर्माण अनुमति।
Lucknow: कैसे रचा गया फरेब का जाल?
- फर्जी नक्शे और रजिस्ट्रियाँ: कई प्लॉट ऐसे थे जिन्हें दो-दो, तीन-तीन बार अलग-अलग लोगों को बेचा गया। नक्शों में हेरफेर कर जमीनों की स्थिति बदली गई और गाटा नंबरों में फर्जीवाड़ा किया गया।
- बिना स्वीकृति प्लॉटिंग: जिन ज़मीनों पर न नक्शा पास था, न जिला पंचायत की मंज़ूरी, वहां पर प्लॉट काटे गए और रजिस्ट्री करवा दी गई।
- कंपनी का कोई वैध अस्तित्व नहीं: असद रईस की कंपनी का न तो कोई स्थायी कार्यालय था, न ही कोई ट्रेसेबल संपर्क सूत्र।
Lucknow: मासूमों की टूटती उम्मीदें
किसी ने बेटी की शादी रोक कर पैसे लगाए, तो किसी ने अपना व्यवसाय बंद कर प्लॉट लिया। कई पीड़ितों ने बताया कि उन्होंने 6-8 लाख रुपये तक जमा किए, रजिस्ट्री हो गई, लेकिन न कब्जा मिला और न ही जमीन का बोर्ड।
आज वो लोग सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं – तहसील, राजस्व विभाग, रजिस्ट्रार और कोर्ट के बीच फंसे हुए हैं। और असद रईस – वो तो कहीं गायब है।

सिर्फ असद रईस नहीं, पूरा सिस्टम कठघरे में
सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इतनी बड़ी धोखाधड़ी सरकारी मिलीभगत के बिना संभव थी?
- रजिस्ट्रार ऑफिस में एक ही गाटा नंबर की कई रजिस्ट्री कैसे हुईं?
- रेरा, जिला प्रशासन और तहसील को इसकी भनक क्यों नहीं लगी?
- क्या किसी नेटवर्क के तहत जानबूझकर आँखें मूंदी गईं?
इन सवालों के जवाब प्रशासन को देने होंगे। क्योंकि अगर आज कार्रवाई नहीं हुई, तो कल और भी असद रईस तैयार खड़े होंगे।
लखनऊ में फर्जी प्रोजेक्ट्स की बाढ़
आज लखनऊ के इटौंजा, मलिहाबाद, मोहनलालगंज, चिनहट जैसे इलाकों में दर्जनों ऐसे प्लॉटिंग साइट्स हैं जो बिना स्वीकृति चल रही हैं। बड़े-बड़े होर्डिंग्स, भारी प्रचार, “रेरा रजिस्टर्ड” का झूठा दावा – लेकिन असलियत में सिर्फ धोखा।
अब क्या करना चाहिए?
- राज्य सरकार को सीधे हस्तक्षेप करना चाहिए।
- रेरा की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
- जिन प्रोजेक्ट्स के पास वैध नक्शा व स्वीकृति नहीं है, उन्हें सील किया जाए।
- सभी पीड़ितों की शिकायतों की विशेष जांच कमेटी गठित की जाए।
निष्कर्ष
यह सिर्फ एक घोटाले की कहानी नहीं, लखनऊ में रियल एस्टेट के नाम पर हो रहे संगठित अपराध का पर्दाफाश है। आम आदमी के सपनों के साथ खिलवाड़ करने वाले असद रईस जैसे लोगों को सिर्फ सज़ा नहीं, बल्कि सबक बनाया जाना चाहिए।
यदि आज भी चुप्पी साध ली गई, तो आने वाले कल में लखनऊ का हर मोहल्ला किसी ना किसी फर्जी बिल्डर का शिकार होगा। ज़रूरत है कठोर, निष्पक्ष और सार्वजनिक कार्रवाई की – ताकि भरोसे की नींव पर बसने वाला सपना फिर से भरोसेमंद बन सके।
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