
Manipur: राज्यसभा ने शुक्रवार सुबह मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने से संबंधित सांविधिक प्रस्ताव को पारित कर दिया। यह प्रस्ताव एक दिन पहले लोकसभा में रात 2:40 बजे पारित किया गया था। शुक्रवार तड़के 2:36 बजे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह प्रस्ताव राज्यसभा में रखा, जिसे लंबी बहस के बाद सुबह 3:58 बजे मंजूरी दी गई।
इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान 11 सांसदों ने भाग लिया। गृह मंत्री शाह ने बहस का जवाब देते हुए कहा कि राष्ट्रपति शासन इसलिए लागू किया गया क्योंकि मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया था और किसी भी पार्टी ने सरकार बनाने का दावा नहीं किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निर्णय विपक्ष के आरोपों के विपरीत, कानून व्यवस्था की विफलता के कारण नहीं लिया गया।
Manipur: विपक्ष की आपत्तियां और मांगें
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मणिपुर यात्रा न करने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि दो वर्षों से मणिपुर हिंसा झेल रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री ने राज्य का दौरा नहीं किया। उन्होंने मांग की कि सरकार मणिपुर की स्थिति पर श्वेत पत्र लाए और निष्पक्ष जांच कराए।
खड़गे ने कहा, “बीजेपी सरकार के पास मणिपुर में शांति बहाल करने की कोई ठोस योजना नहीं है। हर दिन वहां एक नया प्रयोग किया जा रहा है। राष्ट्रपति शासन मणिपुर को नहीं, बल्कि पार्टी की राजनीतिक स्थिति को बचाने के लिए लगाया गया है।”
खड़गे समेत विपक्षी नेताओं ने यह भी आपत्ति जताई कि मणिपुर जैसे गंभीर मुद्दे पर चर्चा रात के 3 बजे कराई गई, जब देश की अधिकांश जनता और मीडिया सो रही थी।

Manipur: शाह का जवाब: “मणिपुर में हो रहे प्रयासों को नजरअंदाज न करें”
अमित शाह ने अपने जवाब में कहा कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले राज्यपाल ने सभी पक्षों से चर्चा की थी और किसी भी दल ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार लगातार दोनों पक्षों (कुकी और मैतेई) के साथ बातचीत कर रही है और जल्द ही दिल्ली में संयुक्त बैठक आयोजित की जाएगी।
शाह ने बताया, “नवंबर, दिसंबर और अभी तक मणिपुर में कोई बड़ी हिंसा नहीं हुई है। यह कहना गलत है कि राष्ट्रपति शासन कानून व्यवस्था की विफलता के कारण लगाया गया। यह कदम संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार उठाया गया।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मणिपुर में जो स्थिति है, वह आतंकवाद या सांप्रदायिक दंगे नहीं, बल्कि जातीय संघर्ष है। उन्होंने कहा, “जातीय हिंसा को नक्सलवाद या आतंकवाद से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। पूर्व में भी मणिपुर में जातीय संघर्ष 7 महीने से लेकर 10 साल तक चला है।”
Manipur: विपक्षी सांसदों की आलोचना
टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सवाल उठाया कि आखिर मणिपुर जैसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा सुबह 3 बजे क्यों कराई गई। उन्होंने कहा, “जब देश सो रहा होता है, तब मणिपुर पर चर्चा करना शर्मनाक है। प्रधानमंत्री को मणिपुर की जनता की आंखों में आंख डालकर बात करनी चाहिए।”
इस पर शाह ने पलटवार करते हुए कहा कि पहले टीएमसी सांसद अपने राज्य पश्चिम बंगाल की स्थिति देखें। “मणिपुर में जो हुआ वह जातीय संघर्ष था। लेकिन पश्चिम बंगाल में जो हुआ, वह जातीय नहीं था। वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध हुए और सरकार मूकदर्शक बनी रही,” उन्होंने कहा।

निष्कर्ष
मणिपुर की स्थिति पर संसद में गहरी बहस हुई, लेकिन इस संवेदनशील विषय पर चर्चा के समय और तरीके को लेकर विपक्ष और सरकार आमने-सामने दिखे। जहां सरकार ने इसे संवैधानिक और आवश्यक कदम बताया, वहीं विपक्ष ने इसे राजनीतिक लाभ उठाने की रणनीति करार दिया। आने वाले समय में मणिपुर में शांति की बहाली और सरकार के कदमों से यह साफ होगा कि राष्ट्रपति शासन कितना प्रभावी साबित होता है।
Manipur:
Also Read: Devara 2: जूनियर एनटीआर ने दी बड़ी जानकारी, बोले- अगला अध्याय होगा अविश्वसनीय!