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लखनऊ चिकनकारी: धागों के पीछे छिपी महिला कारीगरों की कहानी

Lucknow Chikankari: लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई पूरी दुनिया में मशहूर है। यह नाजुक और सुंदर हाथ की कढ़ाई होती है, जो कपड़ों पर तरह-तरह के डिज़ाइन उकेरती है। इस पारंपरिक कला को सालों से यहां की महिलाएं अपने हाथों से संजोए हुए हैं।

चिकनकारी की पहचान

लखनऊ की चिकनकारी को भौगोलिक संकेत (GI Tag) मिला है, जिससे यह तय हो गया है कि यह खास कढ़ाई सिर्फ लखनऊ की पहचान होगी। इस कला ने शहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर कर दिया है। लेकिन इसके पीछे मेहनत करने वाली महिला कारीगरों की जिंदगी आज भी संघर्ष से भरी हुई है।

महिला कारीगरों की मेहनत

हजारों महिलाएं अपने घरों या छोटी-छोटी कार्यशालाओं में बैठकर चिकनकारी करती हैं। यह उनकी आजीविका का जरिया भी है और पारंपरिक विरासत को बनाए रखने का तरीका भी।

सबीना हुदा, जो एक अनुभवी कारीगर हैं, बताती हैं कि उनका दिन सुबह जल्दी शुरू होता है। घर के काम निपटाने के बाद, वह कार्यशाला जाती हैं और पूरे दिन कढ़ाई करती हैं। उनके मुताबिक, “चिकनकारी ने हमें आत्मनिर्भर बनाया है, लेकिन मेहनत के मुकाबले मजदूरी बहुत कम मिलती है।”

कम मजदूरी, ज्यादा मेहनत

कारीगरों को उनके काम के अनुसार भुगतान किया जाता है। चिकनकारी के कई प्रकार होते हैं, जैसे – ‘घासपट्टी’, ‘जाल’, ‘मुर्री’ आदि। इनमें से ‘मुर्री’ और ‘जाल’ की कढ़ाई अधिक मेहनत मांगती है, लेकिन कारीगरों को उसकी सही कीमत नहीं मिलती।

पद्म श्री पुरस्कार विजेता रूना बनर्जी कहती हैं, “इन महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं और सेवानिवृत्ति के बाद कुछ आर्थिक मदद मिलनी चाहिए। यह जरूरी है कि उनकी मेहनत को सही पहचान और मूल्य मिले।”

महिलाओं के लिए नया अवसर

चिकनकारी का काम ज्यादातर ग्रामीण और निम्न आय वर्ग की महिलाओं के लिए रोजगार का जरिया बना हुआ है। नसीम बानो, जो एक सरकारी कार्यशाला में 30 महिलाओं को प्रशिक्षण देती हैं, कहती हैं, “इस कढ़ाई ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है। जो महिलाएं पहले सिर्फ घर तक सीमित थीं, वे अब कढ़ाई के जरिए अपनी पहचान बना रही हैं।”

बिचौलियों की समस्या

एक बड़ी समस्या यह है कि कारीगरों को उनकी मेहनत का सही मेहनताना नहीं मिलता। मीना श्रीवास्तव, जिन्होंने कारीगरों के लिए एक संगठन बनाया, बताती हैं कि अगर एक चिकनकारी कुर्ता 3,500 रुपये में बिकता है, तो कारीगर को सिर्फ 700 रुपये ही मिलते हैं। इसका कारण बिचौलिए हैं, जो उनके श्रम का बड़ा हिस्सा खुद रख लेते हैं।

सरकार और समाज को क्या करना चाहिए?

  • कारीगरों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म दिए जाएं।
  • उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं और पेंशन योजनाएं शुरू की जाएं।
  • महिलाओं को शिक्षा और सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाए, ताकि वे अपने हक के लिए आवाज उठा सकें।

निष्कर्ष

लखनऊ की चिकनकारी सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि हजारों महिलाओं के जीवन का सहारा है। यह जरूरी है कि उन्हें उनकी मेहनत का उचित सम्मान और सही मजदूरी मिले। अगर सरकार, समाज और व्यापारी मिलकर सही कदम उठाएं, तो यह परंपरा और भी समृद्ध हो सकती है, और कारीगरों का जीवन भी बेहतर बन सकता है।

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